Tuesday, April 13, 2010

आखिर एवरेस्ट को नाप ही लिया




दुनिया की सबसे ऊँची चोटी मानी जाने वाली एवरेस्ट की ऊँचाई पर पिछले काफी समय से चल रहे विवाद के समाधान के लिए नेपाल और चीन सहमत हो गए हैं।दोनों देश अब इस बात पर सहमत हैं कि एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर मानी जाएगी. नेपाल और चीन की सीमाएँ इस पर्वत श्रृंखला से लगी हुई हैं।इस मसले पर चीन पहले कहता रहा है कि इसकी ऊँचाई चट्टानों को आधार बनाकर नापी जाए जबकि नेपाल का कहना था कि इसे चट्टानों पर जमीं बर्फ के आधार पर नापी जाए।भारतीय सर्वेक्षण : नेपाल के नजरिए से एवरेस्ट की ऊँचाई चार मीटर अधिक हो रही थी। नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुई बातचीत में चीन ने इस बात को स्वीकार कर लिया। इसका मतलब यह हुआ कि अब एवरेस्ट की आधिकारिक ऊँचाई 8,848 मीटर मानी जाएगी।संवाददाताओं का कहना है कि 1953 में तेनजिंग शेरपा और सर एडमंड हिलेरी के पहली बार एवरेस्ट फतह करने के बाद से हजारों लोग वहाँ पहुँच चुके हैं।एवरेस्ट की ऊँचाई पहली बार 1956 में मापी गई थी, लेकिन उसकी ऊँचाई को लेकर तभी से विवाद बना हुआ था। एक भारतीय सर्वेक्षण ने 1955 में पहली बार एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर मापी थी जिसे आज तक मोटे तौर पर माना जाता था।भारतीय सर्वेक्षण ने ऊँचाई को चोटी की चट्टानों की जगह उसपर पड़ी बर्फ से मापा था। लेकिन भूवैज्ञानिकों का कहना है कि एवरेस्ट की ऊँचाई को लेकर दोनों देशों के अनुमान गलत हो सकते हैं।उनका कहना है कि महाद्वीपीय प्लेटों के स्थानांतरण के कराण भारत ने चीन-नेपाल को नीचे की ओर धकेल दिया है। इससे पर्वत और ऊँचा हो गया है।एक अमेरिकी दल ने 1999 में जीपीएस तकनीकी का उपयोग करते हुए एवरेस्ट की ऊँचाई 8,850 मीटर दर्ज की थी जिसे अमेरिका का नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी भी मानती है। हालाँकि नेपाल इसे आधिकारिक मान्यता नहीं देता है। (बीबीसी से )

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