Friday, April 30, 2010

प्यार जताने के लिए जरूरी है चुम्बन


जब बात प्यार मोहब्बत की हो, तो चुंबन यानी किस को कैसे भूल सकते हैं? यह प्यार की कोमल भावन
ाओं को जताने का माध्यम ही नहीं बल्कि इंसान में हॉर्मोन्स का रिसाव भी करता है।

ऐसा नहीं है कि किस का नाम सुनकर सिर्फ पति-पत्नी और प्रेमी-प्रेमिका का ख्याल ही मन में आए बल्कि यह तो किसी भी रिश्ते में प्यार जताने के लिए जरूरी है।

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो चुम्बन जहां दो विपरीत लिंगियों के बीच हॉर्मोन के रिसाव का काम करता है वहीं यह मां और बच्चों के बीच प्रेम एवं सुरक्षा की भावना प्रदर्शित करने का भी काम करता है।

ब्राजील, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में तो बाकायदा 28 अप्रैल के दिन चुंबन समारोहों का आयोजन होता है जिसमें शामिल होने वाले जोड़े एक-दूसरे को सार्वजनिक रूप से चूमकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं। इन्हें भी पढ़ें
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इतना ही नहीं किस डे के मौके पर कई जगह तो चुंबन प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है।

चुम्बन प्रेम प्रदर्शित करने का एक सशक्त माध्यम है। यह प्रेमी-प्रेमिकाओं और पति-पत्नी के बीच जहां प्यार को मजबूती देता है वहीं अन्य रिश्तों में भी संबंधों की गहराई तथा सुरक्षा की भावना प्रदर्शित करने का काम करता है।

अमेरिकी मनोविज्ञानी हैरी पीटरसन की पुस्तक में भी चुम्बन की विशेषताओं को बताया गया है। इसमें कहा गया है कि दो विपरीत लिंगियों के बीच चुम्बन हॉर्मोन के रिसाव का काम करता है जिससे दोनों के बीच संबंध और गहरे होते हैं। एक-दूसरे को चूमना इस बात का परिचायक है कि दोनों के बीच रिश्तों में जिन्दादिली और भावनाओं में गहराई है।
यदि माता-पिता अपने बच्चे को चूमते हैं तो इससे बच्चे के मन में सुरक्षा की भावना पैदा होती है और उनके प्रति उसके मन में सम्मान बढ़ता है। यदि छोटे बच्चे अपने मां-बाप को चूमते हैं तो इससे मां-बाप के चेहरों पर खुशी भरी एक अजीब सी चमक आ जाती है। इस तरह चुंबन माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्तों की गहराई को मजबूत करने का एक सशक्त आधार भी है।

यदि प्रेम या दांपत्य संबंधों में बंधे युगल चुम्बन से दूर भागते हैं तो समझ लीजिए कि दोनों में एक-दूसरे के प्रति आकर्षण की कमी हो गई है। उन्होंने कहा कि पहला आकर्षण जहां नजरों के माध्यम से होता है वहीं चुम्बन इस आकर्षण को हमेशा कायम रखने का काम करता है।(स्रोत:नवभारत टाइम्स)

सेक्स से ज्यादा कम्पूटर से प्यार


बदलते वक्त ने ब्रिटेनवासियों की जरूरतें और सोच को पूरी तरह बदल दिया है। एक शोध से पता चला है क
ि अधिकतर ब्रिटेनवासी सेक्स की जगह ई-मेल को तरजीह देते हैं।

काम के बोझ से बेहाल ब्रिटेन के लोगों को खाली वक्त में अपनी बीवी या गर्लफ्रेंड का साथ नहीं भाता। इसकी जगह वे ई-मेल चेक करने और सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक में अपने पेज को अपडेट करना पसंद करते हैं।

खास बात यह है कि वयस्क ब्रिटेनवासी ये काम अपने बेडरूम में ही करना पसंद करते हैं। बेडरूम में अपनी बीवी या गर्लफ्रेंड के साथ प्यार के लम्हे गुजारना उनकी सूची में छठे नंबर पर आता है।

शोध में ब्रिटेन के 4000 व्यस्क लोगों से बात की गई। सभी ने सेक्स को अपनी लिस्ट में काफी नीचे बताया। उनकी लिस्ट में सोना, पढ़ना, टीवी देखना, म्यूजिक सुनना और इंटरनेट पर मेल भेजना या चैट करना पहले आता है।

औसतन सात में से एक ब्रिटेनवासी ने कहा कि उसे अपने बिस्तर पर इंटरनेट का लुत्फ लेना या फिर पढ़ना पसंद है। महिलाओं को जहां बिस्तर पर लेटकर पढ़ना पसंद है वहीं पुरुषों को बिस्तर पर लेटे-लेटे टीवी देखना ज्यादा भाता है।

इस शोध के माध्यम से एक रोचक तथ्य सामने आया है। पुरुषों को बेडरूम के बजाय ड्राइंगरूम, बाथरूम, रसोई और बगीचे में सेक्स करना ज्यादा पसंद है।(स्रोत:नवभारत टाइम्स)

बीच में नहीं रुकेगा "भरपूर मज़ा "


एक ऐसी पिल लॉन्च होने वाली है, जो प्रिमच्योर इजेक्युलेशन (स्खलन) को रोकने में मदद करे
गी। यह दवाई इंटरकोर्स के एक से तीन घंटे पहले लेनी होगी। यह ब्रेन में सेराटॉनिन लेवल को बढ़ाने में मदद करेगी, जिससे पुरुषों को सेक्स के दौरान अंतिम क्षणों पर कंट्रोल करना आसान होगा। यह दवाई (प्रिलीज़ी) तीन गुना ज्यादा देर तक सेक्स करने में असरदार साबित होगी।

हालांकि, यह पिल काफी महंगी है। इसके एक पैक (30mg की 3 टैबलेट्स)की कीमत 76 पाउंड (करीब 5 हज़ार रुपये)है। प्रिलीज़ी को 18 से 64 वर्ष तक के पुरुष इस्तेमाल कर सकते हैं। वैसे यह कुछ यूरोपीय देशों के बाजार में पहले ही आ चुकी है। खास बात यह है कि इसे केवल प्राइवेट प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर सिर्फ ऑनलाइन ही खरीदा जा सकता है।

इस पिल के वायग्रा से कहीं ज्यादा पॉप्युलर होने की उम्मीद है। करीब एक दशक पहले नपुंसकता के लिए आई वायग्रा का इस्तेमाल दुनिया भर में तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग करते हैं। जहां नपुंसकता बाद में जाकर पुरुषों की लाइफ पर असर डालती है, वहीं प्रिमच्योर इजेक्युलेशन की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है।(स्रोत:नवभारत टाइम्स)

Tuesday, April 13, 2010


पैसा है हर बीमारी का इलाज


शोधकर्ताओं का कहना है कि दर्द को कम करने में पैसे का स्पर्श कारगर साबित हो सकता है। ऐसा करने से दर्द दूर भी हो सकता है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि जो लोग पैसे की गिनती करने के बाद इस अध्ययन में शामिल हुए उनमें दर्द का एहसास कम था और उन्होंने असुविधा भी कम महसूस की, जबकि पैसा न गिनने वालों में दर्द और असुविधा का एहसास ज्यादा था।एक वेबसाइट के मुताबिक नोट या सिक्कों को छूने या गिनने से लोगों को आत्मनिर्भरता का एहसास होता है और इससे उनका दर्द दूर होने में मदद मिलती है।मिन्नीसोटा विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने छात्रों से 80 हजार डॉलर की गिनती करने के लिए कहा था। इसके बाद इन छात्रों से उनके हाथों को गर्म पानी से भरे बर्तन में डालने के लिए कहा गया। शोधकर्ताओं ने देखा कि जिन छात्रों ने नोटों की गिनती की थी उनके हाथों में गर्म पानी के संपर्क में आने पर कम दर्द हुआ।

हमारी लड़कियों जैसी हैं चीनी महिलाएं


चीन में ज्यादातर महिलाएं ऐसे पुरुषों से विवाह करना चाहती हैं, जिनके पास अपने माता-पिता की बड़ी सम्पत्ति हो।समाचार पत्र 'चाइना डेली' ने एक अध्ययन के हवाले से इस संबंध में खबर प्रकाशित की है। समाचार पत्र के मुताबिक कॉलेज जाने वाली चीन की 60 प्रतिशत लड़कियां धनी परिवारों के उन बेटों से विवाह करना चाहती हैं जो अपने माता-पिता की बड़ी सम्पत्तियों के वारिस हों।'वूमेंस फेडरेशन ऑफ गुआंगजौ' ने गुआंग्डोंग प्रांत में एक सर्वेक्षण किया था। सर्वेक्षण में पाया गया कि 59.2 प्रतिशत महिलाएं 80 के दशक में जन्मे पुरुषों से विवाह करने को प्राथमिकता देती हैं और 57.6 प्रतिशत महिलाएं अच्छी क्षमता वाले पुरुषों को अपना जीवनसाथी चुनना चाहती हैं।गुआंगजौ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर लियू शूकेन कहती हैं, "ज्यादातर कॉलेज छात्राएं कम व्यक्तिगत संघर्ष करते हुए एक आरामदायक जीवन जीना चाहती हैं।"साथी के विश्वासघात के संबंध में पूछे गए एक और सवाल के जवाब में 20 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे उनके साथियों द्वारा कभी-कभार की गई बेवफाई को बर्दाश्त कर सकती हैं।इस बीच केवल 10 प्रतिशत महिलाओं ने ही यह स्वीकार किया कि वह अपने जीवन में सिर्फ एक ही व्यक्ति के प्रति ईमानदार रहेंगी।सर्वेक्षण में जनवरी 2010 से मार्च 2010 तक 992 महिलाओं से साक्षात्कार किए गए। इस सर्वेक्षण के जरिए पारस्परिक संबंधों जैसे मुद्दों पर कॉलेज छात्राओं के मूल्यों का आकलन किया गया।

बीमार कर सकता है 'कैंडल लाइट डिनर'

किसी शांत जगह में अपनी महिला मित्र के साथ 'कैंडल लाइट डिनर' यानि मोमबत्ती की दूधिया रोशनी में शानदार भोजन भला किसे पसंद नहीं होगा। लेकिन शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि ऐसे रूमानी भोज स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं!
BBCसाउथ कैरोलाइना स्टेट युनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने मोमबत्तियों से निकलने वाले धुएँ का परीक्षण किया है। उन्होंने पाया कि पैराफीन की मोमबत्तियों से निकलने वाले हानिकारक धुएँ का संबंध फेंफड़ें के कैंसर और दमे जैसी बीमारियों से है।हालाँकि शोधकर्ताओं ने ये भी माना कि मोमबत्ती से निकलने वाले धुएँ का स्वास्थ्य पर हानिकारक असर पड़ने में कई वर्ष लग सकते हैं।ब्रिटेन के विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान, मोटापा और शराब सेवन से कैंसर होने का खतरा ज्यादा है। विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि मोमबत्तियों के कभी-कभी इस्तेमाल से लोगों को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है।कौन है खतरे के दायरे में?मुख्य शोधकर्ता आमिद हमीदी का कहना है कि जो लोग पैराफीन मोमबत्तियों का ज्यदा इस्तेमाल करते हैं वो खतरे के दायरे में हैं। आमिर हमीदी ने स्थित अमेरिकन केमिकल सोसाइटी को बताया कि कभी-कभी मोमबत्तियों के इस्तेमाल से और उससे निकलने वाले धुएँ से ज्यदा असर नहीं होगा।उनका कहना था, 'यदि कोई व्यक्ति कई वर्षों तक हर रोज पैराफीन मोमबत्तियाँ जलाता है, खासकर ऐसे कमरे में जहाँ से हवा आने-जाने का प्रावधान नहीं है, तब समस्या हो सकती है।'मोमबत्ती से निकलने वाले धुएँ की जाँच पड़ताल के लिए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में कई तरह की मोमबत्तियों को जलाया और उससे निकलने वाले पदार्थों को एकत्र किया।पैराफीन-आधारित मोमबत्तियों से निकलने वाले धुएँ के परीक्षण से पता चला कि उसके जलने से पैदा होने वाला ताप इतना तेज नहीं होता जिससे खतरनाक कण जैसे टॉल्युइन और बेंजीन पूरी तरह से जल पाएँ।वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खी के छत्ते से निकले मोम या सॉया से बनने वाली मोमबत्तियाँ जब जलती हैं तो उनसे इतनी ज्यादामात्रा में रसायन नहीं निकलता और इसलिए वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि ऐसी ही मोमबत्तियों का इस्तेमाल किया जाए।सबूत : उधर ब्रिटेन स्थित कैंसर रिसर्च के डॉक्टर जोआना ओवेन्स कहती हैं कि ऐसा कोई सीधा सबूत नहीं मिला है जिससे कहा जा सके कि मोमबत्ती के रोज इस्तेमाल से कैंसर जैसी बीमारियाँ होने का खतरा हो सकता है।डॉक्टर ओवेन्स कहती हैं कि बंद कमरे में अगर सिगरेट पी जाए तो उससे प्रदूषण बढ़ता है और ये ज्यादा महत्वपूर्ण है। वो कहती हैं, 'जब हम कैंसर की बात करते हैं तो हमें पक्के सबूतों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सिगरेट, शराब सेवन, मोटापा, खाने पीने की गलत आदतें, इन सब से कैंसर होने की संभावना ज्यदा होती है।'ब्रिटिश लंग फाउंडेशन के मेडिकल डॉयरेक्टर डॉक्टर नोएमी आइजर कहती हैं कि पैराफीन मोमबत्ती के कभी-कभी इस्तेमाल से फेफड़ों को खतरा नहीं होना चाहिए, लेकिन लोगों को मोमबत्ती जलाते वक्त कुछ सावधानियाँ भी बरतनी चाहिए जैसे कि मोमबत्तियाँ खुले हवादार कमरों में जलाई जाएँ।(बीबीसी से)

देखो शादी के हैं कितने फायदे




एक नए शोध के अनुसार विवाहित लोगों में कैंसर का सामना करने की संभावना अधिक होती है जबकि ऐसे लोगों के लिए कैंसर से बचना मुश्किल हो सकता है जिनकी शादी टूटने की स्थिति में है। अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय ने 1973 से 2004 के बीच 38 लाख कैंसर रोगियों के आँकड़ों का अध्ययन करने के बाद ये निष्कर्ष निकाला है।शोधकर्ताओं ने पाया कि शादीशुदा कैंसर रोगियों के लिए रोग होने के बाद पाँच साल तक जीवित रह पाने की संभावना 63 प्रतिशत होती है। लेकिन इसकी तुलना में ऐसे विवाहित लोगों के कैंसर से पाँच साल तक लड़ पाने की संभावना 45 प्रतिशत होती है जिनकी शादी टूटने के कगार पर है।विज्ञान जर्नल कैंसर में प्रकाशित होनेवाली शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि संभवतः शादी टूटने के तनाव के कारण रोगियों के कैंसर से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।इसके पूर्व भी शादी और स्वास्थ्य को लेकर अध्ययन किए गए हैं। इनमें कई अध्ययनों में पाया गया है कि जीवनसंगी का प्रेम और साथ रोग से लड़ने के लिए बहुत आवश्यक होता है।शोध : शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के दौरान विवाहित, अविवाहित, विधवा-विधुर, तलाकशुदा और शादी टूटने की स्थिति वाले कैंसर रोगियों के बारे में अध्ययन किया और ये पता लगाने का प्रयास किया कि इनमें से कितने लोग कैंसर के बाद पाँच से 10 साल तक जीवित रह पाते हैं।उन्होंने पाया कि विवाहित और अविवाहित रोगियों के कैंसर से लड़ पाने की संभावना सबसे अधिक रही। उनके बाद तलाकशुदा और विधवा-विधुर रोगियों का स्थान आता है।इस शोध की मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर ग्वेन स्प्रेन ने कहा कि इस अध्ययन से ये पता चलता है कि कैंसर रोगियों में ऐसे लोगों पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जिनकी शादी टूटने वाली है।उन्होंने कहा, 'इलाज के दौरान रिश्तों के कारण होनेवाले तनाव की पहचान करने से चिकित्सक और पहले हस्तक्षेप कर सकेंगे जिससे कि रोगियों के बचने की संभावना बेहतर हो सकती है।' मगर उन्होंने कहा कि इस दिशा में और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।ब्रिटेन की संस्था कैंसर रिसर्च के प्रमुख सूचना अधिकारी ने भी कहा है कि इस शोध के निष्कर्ष को अंतिम निष्कर्ष नहीं समझा जाना चाहिए और शादी टूटने की स्थिति वाले रोगियों के कैंसर से लड़ पाने की क्षमता कम होने के और भी कई कारण हो सकते हैं। ( बीबीसी से)

आखिर एवरेस्ट को नाप ही लिया




दुनिया की सबसे ऊँची चोटी मानी जाने वाली एवरेस्ट की ऊँचाई पर पिछले काफी समय से चल रहे विवाद के समाधान के लिए नेपाल और चीन सहमत हो गए हैं।दोनों देश अब इस बात पर सहमत हैं कि एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर मानी जाएगी. नेपाल और चीन की सीमाएँ इस पर्वत श्रृंखला से लगी हुई हैं।इस मसले पर चीन पहले कहता रहा है कि इसकी ऊँचाई चट्टानों को आधार बनाकर नापी जाए जबकि नेपाल का कहना था कि इसे चट्टानों पर जमीं बर्फ के आधार पर नापी जाए।भारतीय सर्वेक्षण : नेपाल के नजरिए से एवरेस्ट की ऊँचाई चार मीटर अधिक हो रही थी। नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुई बातचीत में चीन ने इस बात को स्वीकार कर लिया। इसका मतलब यह हुआ कि अब एवरेस्ट की आधिकारिक ऊँचाई 8,848 मीटर मानी जाएगी।संवाददाताओं का कहना है कि 1953 में तेनजिंग शेरपा और सर एडमंड हिलेरी के पहली बार एवरेस्ट फतह करने के बाद से हजारों लोग वहाँ पहुँच चुके हैं।एवरेस्ट की ऊँचाई पहली बार 1956 में मापी गई थी, लेकिन उसकी ऊँचाई को लेकर तभी से विवाद बना हुआ था। एक भारतीय सर्वेक्षण ने 1955 में पहली बार एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर मापी थी जिसे आज तक मोटे तौर पर माना जाता था।भारतीय सर्वेक्षण ने ऊँचाई को चोटी की चट्टानों की जगह उसपर पड़ी बर्फ से मापा था। लेकिन भूवैज्ञानिकों का कहना है कि एवरेस्ट की ऊँचाई को लेकर दोनों देशों के अनुमान गलत हो सकते हैं।उनका कहना है कि महाद्वीपीय प्लेटों के स्थानांतरण के कराण भारत ने चीन-नेपाल को नीचे की ओर धकेल दिया है। इससे पर्वत और ऊँचा हो गया है।एक अमेरिकी दल ने 1999 में जीपीएस तकनीकी का उपयोग करते हुए एवरेस्ट की ऊँचाई 8,850 मीटर दर्ज की थी जिसे अमेरिका का नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी भी मानती है। हालाँकि नेपाल इसे आधिकारिक मान्यता नहीं देता है। (बीबीसी से )

बिना ऑक्सीजन के जीने वाले जीव




वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे जीवों की खोज की है जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। ये जीव भूमध्यसागर के तल पर मिले हैं।इटली के मार्श पॉलीटेकनिक विश्वविद्यालय में कार्यरत रॉबर्तो दोनोवारो और उनके दल ने इन कवचधारी जीवों की तीन नई प्रजातियों की खोज की है। दोनोवारो ने बीबीसी को बताया कि इन जीवों का आकार करीब एक मिलीमीटर है और ये देखने में कवच युक्त जेलीफ़िश जैसे लगते हैं।प्रोफेसर रॉबर्तो दोनोवारो ने कहा, 'ये गूढ़ रहस्य ही है कि ये जीव बिना ऑक्सीजन के कैसे जी रहे हैं क्योंकि अब तक हम यही जानते थे कि केवल बैक्टीरिया ऑक्सीजन के बिना जी सकते हैं।'भूमध्यसागर की ला अटलांटा घाटी की तलछट में जीवों की खोज करने के लिए पिछले एक दशक में तीन समुद्री अभियान हुए हैं। इसी दौरान इन नन्हे कवचधारी जीवों की खोज हुई।यह घाटी क्रीट द्वीप के पश्चिमी तट से करीब 200 किलोमीटर दूर भूमध्यसागर के भीतर साढ़े तीन किलोमीटर की गहराई में है, जहाँ ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं है।नए जीवों के अंडे : प्रोफेसर दानोवारो ने बीबीसी को बताया कि इससे पहले भी बिना ऑक्सीजन वाले क्षेत्र से निकाले गए तलछट में बहुकोशिकीय जीव मिले हैं लेकिन तब ये माना गया कि ये उन जीवों के अवशेष हैं जो पास के ऑक्सीजन युक्त क्षेत्र से वहाँ आकर डूब गए।प्रोफ़ैसर दानोवारो ने कहा, 'हमारे दल ने ला अटलांटा में तीन जीवित प्रजातियाँ पाईं जिनमें से दो के भीतर अंडे भी थे।'हालाँकि इन्हें जीवित बाहर लाना संभव नहीं था लेकिन टीम ने जहाज पर ऑक्सीजन रहित परिस्थितियाँ तैयार करके अंडो को सेने की प्रक्रिया पूरी की। उल्लेखनीय है कि इस ऑक्सीजन रहित वातावरण में इन अंडों से जीव भी निकले।दानोवारो ने कहा, 'यह खोज इस बात का प्रमाण है कि जीव में अपने पर्यावरण के साथ समायोजन करने की असीम क्षमता होती है।'उन्होंने कहा कि दुनिया भर के समुद्रों में मृत क्षेत्र फैलते जा रहे हैं जहाँ भारी मात्रा में नमक है और ऑक्सीजन नहीं है।स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी की लीसा लेविन कहती हैं, 'अभी तक किसी ने ऐसे जीव नहीं खोजे जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हों और प्रजनन कर सकते हों।'उन्होंने कहा कि पृथ्वी के समुद्रों के इन कठोर परिवेशों में जाकर और अध्ययन करने की जरूरत है। इन जीवों की खोज के बाद लगता है कि अन्य ग्रहों पर भी किसी रूप में जीवन हो सकता है जहाँ का वातावरण हमारी पृथ्वी से भिन्न है।(बीबीसी से )