Wednesday, July 30, 2008

शोर

मेरे भीतर इतना शोर
हैकि
मुझे अपना बाहर
बोलना तक अपराध लगता है
जबकि
बाहर ऐसी स्थिति हैकि
चुप रहे तो गए।

-(विष्णु नागर)

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