प्रदूषण को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले भारतीय महानगरों के निवासियों को यह जानकर कुछ राहत मिल सकती है कि भारतीय नागरिक सबसे ज्यादा पर्यावरण हितैषी हैं जबकि अमेरिकी इस मामले में सबसे पीछे हैं।
पर्यावरण की निरंतरता के अनुरूप उपभोग के तौर तरीकों पर 17 देशों में किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा तैयार कंज्यूमर ग्रीन इंडेक्स में 17 देशों के 17000 उपभोक्ताओं का अध्ययन किया गया है।
सर्वे में उपभोक्ताओं से ऊर्जा के उपयोग और संरक्षण, परिवहन रुचि, खाद्य साधन, परंपरागत उत्पादों बनाम हरित उत्पादों का सापेक्षिक उपयोग, पर्यावरण के प्रति नजरिया और पर्यावरण मुद्दों के बारे में जानकारी संबंधित सवाल पूछे गए थे।
सर्वे में पाया गया है कि उपभोग प्रतिरूप मामले में अमेरिका सबसे कम पर्यावरण हितैषी है। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार ग्रीन इंडेक्स में उभरते देशों के लोग सबसे ऊपर के पायदान पर रहे जबकि औद्योगिक देशों के उपभोक्ता इस मामले में निचले पायदान पर रहे।(source:hindustan times)
नेशनल ज्योग्राफिक की रैकिंग में क्रमश: भारतीय, ब्राजीलियाई, चीनी, मैक्सिकन, हंगरी, दक्षिण कोरिया, स्वीडिश, स्पेनिश, आस्ट्रेलियन, जर्मन, जापानी, ब्रिटिश, फ्रेंच, कनाडाई और अमेरिकन को स्थान दिया गया है।
वर्ष 2008 के मुकाबले सतत पर्यावरण उपभोक्ता व्यवहार के मामले में सबसे ज्यादा भारतीय, रूसी और अमेरिकी जनता के रुख में तब्दीली आई है। जबकि दूसरी ओर जर्मनी, स्पेन, स्वीडन, फ्रांस और दक्षिण कोरिया की स्थिति खराब हुई है।
हालांकि अमेरिकी जनता का पर्यावरण हितैषी व्यवहार निचले पायदान पर है लेकिन उनके जीवन शैली में कुछ सुधार हुआ है। अमेरिकी जनता का औसत ग्रीन इंडेक्स हर वर्ष औसतन 1.3 फीसदी बढ़ रहा है।
सर्वेक्षण में आवास क्षेत्र में पयार्वरण के अनुरूप ज्यादा सतर्कता देखी गई। वर्ष 2009 और 2010 दोंनों साल ग्रीनडेक्स स्कोर में इसकी निरंतरता देखी गई। इसका आकलन लोगों के घरों में ऊर्जा और संसाधनों के उपभोग के आधार पर किया गया। आवास श्रेणी में पर्यावरण अनुकूल उपभोग के मामले में ब्राजील, भारत, मेक्सिको और चीन के लोग सबसे ऊपर आंके गए जबकि जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटिश, जापान और अमेरिकी इस मामले में अंतिम छह में रहे।
ऊर्जा के मामले में खपत में कमी के लिए ज्यादातर लोगों ने कीमतों को वजह बताया जबकि 20 से 50 प्रतिशत लोगों ने खपत कम करने के लिए पर्यावरणीय चिंताओं को इसकी वजह बताया। परिवहन के लिए रुचि के मामले में परिणाम मिला जुला रहा। कुछ देशों में इसमें सुधार था तो कुछ में स्थिति और कमजोर रही।
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