Friday, June 25, 2010

कुत्ते के प्रेम में घर ही रंग दिया...

जो गुजर गए, उनकी निशानियां उनकी याद दिलाती हैं। लेकिन क्रोएशिया के एक परिवार ने इस दिशा में एक कदम बढ़ कर काम किया है। उन्होंने भगवान को प्यारे हो गए अपने डालमेशियन कुत्ते की याद में अपने घर को ही ब्लैक एंड ह्वाइट पेंट से धब्बेदार रंगवा दिया। 55 वर्षीय गोरेन टोमेस्टिक अपने कुत्ते बिंगो की याद में कुछ करना चाहते थे। सो उन्होंने अपने घर की बाहरी दीवारों को कुत्ते के रंग में रंगवा दिया। उनका यह पालतू कुत्ता एक सड़क दुर्घटना में मर गया था।
गोरेन ने बताया, हमें बिंगो से बहुत प्यार था। हम उसकी यादों को हमेशा अपने बीच रखना चाहते हैं। हमारा घर अब उसकी याद दिलाता रहेगा। लेकिन गोरेन के इस प्रयास से उनके पड़ोसी खुश नहीं हुए। दरअसल ब्लैक एंड ह्वाइट टेढ़े-मेढ़े धब्बे देखकर उनके सिर में दर्द पैदा होने लगा। उन्होंने शिकायत की। पड़ोसियों की इस शिकायत पर गोरेन अब अपने घर को दूसरे रंग में रंगवाएंगे। उनकी पड़ोसन बोरिस्लावा ट्रेगिन ने कहा, भगवान का शुक्र है उन्हें यह बात समझ तो आई। मैं बाहर से पीले रंग के घर को देखकर रह सकती हूं। लेकिन उस धब्बेदार पेंट को देखकर मेरे सिर में दर्द हो जाता है।(source:yahoo.com)

चिट्ठी भेजकर आई मौत!

इसे किसी की साजिश करार दिया जाए या मजाक। जो भी हो, मगर इस साजिश या मजाक ने एक वृद्ध की जान ले ली। घटना के बारे में जो भी सुन रहा है, वही अपने दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है। कोतवाली नगर थाना क्षेत्र के कैलावालान, दिल्ली गेट मोहल्ले में थान सिंह नामक व्यक्ति का परिवार रहता है। 70 वर्षीय वृद्ध थान सिंह दूध की डेयरी चलाते थे। जबकि उनके तीनों पुत्र आटा चक्की चलाने का काम करते हैं। विगत 22 जून को थान सिंह के मकान पर एक रजिस्टर्ड लिफाफा पहुंचा। जब इस लिफाफे को खोला गया तो परिवार का हर कोई सदस्य सन्न रह गया।
दरअसल, रजिस्टर्ड लिफाफे में कुछ और नहीं बल्कि थान सिंह के अंतिम संस्कार की श्मशान घाट की पर्ची थी। पर्ची में उल्लेख था कि थान सिंह की मौत विगत 17 जून को हो गई थी। जबकि 18 जून को उनका अंतिम संस्कार हिंडन स्थित श्मशान घाट के 5 नंबर प्लेटफार्म पर कर दिया गया। पर्ची पर थान सिंह का नाम, पता व टेलीफोन नंबर पूरी तरह से ठीक था।
अपने ही अंतिम संस्कार की पर्ची देखकर खुद थान सिंह का माथा ठनक गया। परिजनों का कहना है कि इसके बाद से ही थान सिंह तनाव में आ गए थे। शायद यही कारण रहा कि रजिस्टर्ड डाक से पर्ची मिलने के अगले ही दिन सुबह थान सिंह की मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि पर्ची के बाद से ही वह इस कदर तनाव में थे कि शायद उन्हें हार्टअटैक हो गया।
परिजनों ने हिंडन घाट पर जाकर जब इस पर्ची की बाबत जानकारी हासिल की तो पता चला कि उक्त पर्ची फर्जी है। किसी ने फर्जी तरीके से पर्ची छपवाकर इस घटना को अंजाम दिया।(source:yahoo.com)

Monday, June 14, 2010

चार अनोखी बहनों की कहानी


इसे कुदरत का करिश्मा ही कहा जाएगा कि 21 साल पहले एक साथ जन्मी चार बहनें अब दक्षिण कोरिया के उसी अस्पताल में नर्स हैं, जिसमें उनका जन्म हुआ था। यही नहीं, एक सी दिखने वाली इन चारो बहनों ने नर्सिंग की अपनी ट्रेनिंग भी एक ही दिन शुरु की थी।ह्वांग सुएल और उसके साथ जन्मी उसकी तीनों बहनें- सिओल, सोल और मिलाल अब नर्सिंग में अपने उज्जवल भविष्य को लेकर उत्साहित हैं। अस्पताल के कर्मचारियों ने भी इन चारों बहनों का खुलकर स्वागत किया। हालांकि, हो सकता है कि कोई इन चारों बहनों को एक साथ देखकर इस भ्रम का शिकार हो जाए कि उसे चीजों चार-चार दिखाई दे रहीं हैं।शायद ऐसी ही चीजों को देखकर कहा गया है- ‘सत्‍य कल्‍पना से भी विचित्र होता है।’(meri khabar.com)

कंडोम करेगा महिलाओं की रक्षा


साउथ अफ्रीका में वर्ल्ड कप के दौरान एक डॉक्टर महिलाओं के लिए 30 हजार एंटी रेप कंडोम फ्री में बांट रही है। महिलाओं के लिए विशेष तौर पर विकसित किए गए इस कंडोम का नाम रेपएक्स रखा गया है। रेपएक्स में छोटे-छोटे हुक्स लगे हैं जो रेप की स्थिती में रेपिस्ट के अंग में फंस जाएंगे। कंडोम बनाने वाली डॉक्टर सोनेट एहलर्स का कहना है कि एक बार रेपिस्ट के अंग में फंसा यह कंडोम सिर्फ अस्पताल में ही निकाला जा सकता है। अस्पताल पहुंचने पर रेप करने वाले व्यक्ति को आसानी से पहचाना जा सकता है।रेपएक्ल इससे पहले रेप निरोधी कंडोम के प्रारूपो से अलग है। यह रेपिस्ट की खाल नहीं काटता है जिससे एचआइवी फैलने का खतरा कम हो जाता है।
डॉ. एलहर्स का कहना है कि उन्हें इस कंडोम को बनाने की प्रेरणा रेप पीड़ित एक महिला से मिली। उसका कहना था कि काश उसके अंग में दांत होते और वो रेपिस्ट को काट सकती।एलहर्स कहती है कि महिलाओं को रेप से सुरक्षा देने वाला यह कंडोम अफ्रीका में काफी उपयोगी साबित होगा। अफ्रीका में महिलाओं के खिलाफ सेक्स अपराधों की दर काफी ज्यादा है। साउथ अफ्रीका की मेडिकल काउंसिल द्वारा कराए गए एक सर्वे हर चार में से एक महिला ने स्वयं को रेप पीड़ित बताया था।
रेपएक्स की काफी आलोचना भी हो रही है। महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली एक एनजीओ के सदस्यों का कहना है कि यह कंडोम रेप से बचाता नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी की हो सकता है यह कंडोम रेपिस्ट को और ज्यादा हिंसक बना दे। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि कुछ महिलाएं इस कंडोम का इस्तेमाल बेगुनाह लोगों के खिलाफ भी कर सकती है।(source:merikhabar.com)

Tuesday, June 8, 2010

पुरुष लगातार घूरे तो समझो लम्बा चलेगा प्यार

वैज्ञानिकों का कहना है कि पुरुषों की आंखें उनके दिल के राज खोलती हैं। आंखें बताती हैं कि वह किसी रिश्ते को लंबे समय तक कायम रखना चाहते हैं या बस कुछ दिन की ही मुलाकात चाहते हैं।

यदि कोई पुरुष किसी महिला की आंखों में लंबे समय तक लगातार देखता है तो इसका मतलब है कि वह महिला के साथ अपने रिश्ते को लंबे समय तक कायम रखना चाहता है। लेकिन यदि उसकी निगाहें कुछ पलों के लिए महिला के चेहरे पर ठहरने के बाद उसके शरीर पर पहुंच जाती हैं तो इसका मतलब है कि वह महिला से कम समय में कुछ चीजें हासिल करना चाहता है।

समाचार पत्र डेली मेल के मंगलवार के अंक के मुताबिक टोक्यो विश्वविद्यालय के डा. टॉम करी ने अपने अध्ययन में पाया कि यदि कोई पुरुष अपना जीवनसाथी खोजता है तो उसके लिए साथी के शरीर से ज्यादा उसका चेहरा अहमियत रखता है।

स्टिरलिंग विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डा. एंथनी लिटिल के मुताबिक यदि आपको लंबे समय तक कायम रहने वाले रिश्ते की तलाश है तो आप इसमें दोस्ताना, विनोदी और सहभागी साथी तलाशते हैं। उन्होंने कहा कि साथी के विषय में ये सारी जानकारियां उसके चेहरे से ही मिल सकती हैं।

यह अध्ययन 260 महिला व पुरुष प्रतिभागियों पर किया गया था। महिला एवं पुरुष प्रतिभागियों को विपरीत लिंग वाले मॉडल्स के छायाचित्र देखने के लिए कहा गया था। इसके बाद प्रतिभागियों से पूछा गया कि दीर्घ काल तक संबंध और अल्प अवधि तक संबंध बनाने के हिसाब से कौन से मॉडल कितने आकर्षक थे।

जब दीर्घ अवधि के संबंधों की बात हुई तो केवल 20 प्रतिशत पुरुषों ने ही मॉडल्स के चेहरे की अपेक्षा उनके शरीर को तरजीह दी। यद्यपि जब उनसे अल्प अवधि के संबंधों पर पूछा गया तो 40 प्रतिशत पुरुषों ने मॉडल्स के चेहरे की अपेक्षा उनके शरीर को महत्व दिया।(source:mahanagar times)

मगरमच्छ तक खाते थे हमारे पूर्वज

वैज्ञानिकों ने अफ्रीकी देश केन्या में पत्थरों से बने प्राचीन औजारों और कटे का निशान लिए हुए जानवरों के अवशेषों की खोज की है।

वैज्ञानिकों का दावा है कि यह ऎसा पहला प्रमाण है, जिसमें यह साबित होता है कि प्राचीन इंसान विभिन्न तरह के आहार लेता था जिसमें मछली, मगरमच्छ व कछुए भी शामिल थे।

एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ हैकि तकरीबन 20 लाख साल पहले के लोगों ने जलीय आहार लेना शुरू किया था, जिसमें मगरमच्छ, कछुए और मछलियां शामिल थीं। यह ऎसा आहार था, जिसने इंसानी दिमाग और अफ्रीका से इंसान के कदम बाहर रखने में एक अहम भूमिका निभाई होगी। न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व अध्ययन करने वाले दल के सदस्य एंडी हेरीज ने कहा कि अफ्रीका में मौजूद यह जगह इस बात का पहला प्रमाण है कि प्राचीन मानव बहुत ज्यादा व्यापक आहार लिया करता था। इस अध्ययन में नेशनल म्यूजियम्स ऑफ केन्या की भी भागीदारी थी। अध्ययन करने वाले दल के अगुवा दक्षिण अफ्रीका में यूनीवर्सिटी ऑफ केपटाउन के डेविड ब्राउन और अमेरिका की रजर्स यूनीवर्सिटी के जैक हैरिस थे।(source:mahanagar times)

Monday, June 7, 2010

मिल ही गई गैस पीड़ितों को सजा

वर्ष 1984 की दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के 25 साल बाद इस मामले के आठों आरोपियों को सोमवार को दोषी करार दिया गया। यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष सहित सभी आठ आरोपियों को दोषी करार दिया गया।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी ने इन आरोपियों को धारा 304 [ए] और धारा 304 के तहत दोषी करार दिया। जिन लोगों को दोषी ठहराया गया है उनके नाम हैं:- यूसीआईएल के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महेन्द्रा, प्रबंध संचालक विजय गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदार, व‌र्क्स मैनेजर जे मुकुंद, प्रोडक्शन मैनेजर एस पी चौधरी, प्लांट सुपरिंटेंडेंट के वी शे्टटी, प्रोडक्शन इंचार्ज एस आई कुरैशी और यूसीआईएल कलकत्ता। मामले की सुनवाई के दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे।

उल्लेखनीय है कि 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में कुल नौ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से यूसीआईएल के तत्कालीन व‌र्क्स मैनेजर आर बी रायचौधरी की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।(source:jagran.com)

पर्यावरण बचाने मै भारतीय सबसे आगे

प्रदूषण को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले भारतीय महानगरों के निवासियों को यह जानकर कुछ राहत मिल सकती है कि भारतीय नागरिक सबसे ज्यादा पर्यावरण हितैषी हैं जबकि अमेरिकी इस मामले में सबसे पीछे हैं।

पर्यावरण की निरंतरता के अनुरूप उपभोग के तौर तरीकों पर 17 देशों में किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा तैयार कंज्यूमर ग्रीन इंडेक्स में 17 देशों के 17000 उपभोक्ताओं का अध्ययन किया गया है।

सर्वे में उपभोक्ताओं से ऊर्जा के उपयोग और संरक्षण, परिवहन रुचि, खाद्य साधन, परंपरागत उत्पादों बनाम हरित उत्पादों का सापेक्षिक उपयोग, पर्यावरण के प्रति नजरिया और पर्यावरण मुद्दों के बारे में जानकारी संबंधित सवाल पूछे गए थे।

सर्वे में पाया गया है कि उपभोग प्रतिरूप मामले में अमेरिका सबसे कम पर्यावरण हितैषी है। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार ग्रीन इंडेक्स में उभरते देशों के लोग सबसे ऊपर के पायदान पर रहे जबकि औद्योगिक देशों के उपभोक्ता इस मामले में निचले पायदान पर रहे।(source:hindustan times)

नेशनल ज्योग्राफिक की रैकिंग में क्रमश: भारतीय, ब्राजीलियाई, चीनी, मैक्सिकन, हंगरी, दक्षिण कोरिया, स्वीडिश, स्पेनिश, आस्ट्रेलियन, जर्मन, जापानी, ब्रिटिश, फ्रेंच, कनाडाई और अमेरिकन को स्थान दिया गया है।

वर्ष 2008 के मुकाबले सतत पर्यावरण उपभोक्ता व्यवहार के मामले में सबसे ज्यादा भारतीय, रूसी और अमेरिकी जनता के रुख में तब्दीली आई है। जबकि दूसरी ओर जर्मनी, स्पेन, स्वीडन, फ्रांस और दक्षिण कोरिया की स्थिति खराब हुई है।

हालांकि अमेरिकी जनता का पर्यावरण हितैषी व्यवहार निचले पायदान पर है लेकिन उनके जीवन शैली में कुछ सुधार हुआ है। अमेरिकी जनता का औसत ग्रीन इंडेक्स हर वर्ष औसतन 1.3 फीसदी बढ़ रहा है।

सर्वेक्षण में आवास क्षेत्र में पयार्वरण के अनुरूप ज्यादा सतर्कता देखी गई। वर्ष 2009 और 2010 दोंनों साल ग्रीनडेक्स स्कोर में इसकी निरंतरता देखी गई। इसका आकलन लोगों के घरों में ऊर्जा और संसाधनों के उपभोग के आधार पर किया गया। आवास श्रेणी में पर्यावरण अनुकूल उपभोग के मामले में ब्राजील, भारत, मेक्सिको और चीन के लोग सबसे ऊपर आंके गए जबकि जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटिश, जापान और अमेरिकी इस मामले में अंतिम छह में रहे।

ऊर्जा के मामले में खपत में कमी के लिए ज्यादातर लोगों ने कीमतों को वजह बताया जबकि 20 से 50 प्रतिशत लोगों ने खपत कम करने के लिए पर्यावरणीय चिंताओं को इसकी वजह बताया। परिवहन के लिए रुचि के मामले में परिणाम मिला जुला रहा। कुछ देशों में इसमें सुधार था तो कुछ में स्थिति और कमजोर रही।