Monday, October 7, 2024

रावण के बहाने समाज की बात…

समाज में एक बार फिर रावण ‘आकार’ लेने लगा है। हर साल इन्हीं दिनों में देश के तमाम शहरों में रावण जन्म लेने लगता है और धीरे-धीरे उसका आकार विशाल और रूप भयंकर होता जाता है। आमतौर पर मानव जीवन में बच्चों के जन्म में 9 महीने का समय लगता है लेकिन रावण तो रावण है इसलिए वह 9 महीने का सफर महज 9 दिन में पूरा कर लेता है। वैसे भी बुरी प्रवृत्तियों के विस्तार में समय कहां लगता है। अच्छाइयों को जरूर आदत बनने में कई कसौटियों से गुजरना पड़ता है।

फिलहाल, रावण का धड़ बन गया है। इसमें अहम तथ्य यह है कि जन्म के साथ ही रावण फूलना शुरू कर देता है। यह फुलाव घमंड का हो सकता है,असीमित शक्ति का और शायद संपन्नता का भी। जैसे-जैसे रावण दहन का समय नजदीक आता जाएगा रावण का शरीर और सिर घमंड से बढ़ते जाएंगे। एक सिर वाला रावण दस सिर का हो जाएगा।…और फिर जैसा कि कहावतों/मुहावरों में कहा जाता है कि ‘पाप का घड़ा भर गया है’,’बुराई का अंत निकट है’ या फिर ‘बुराई का अंत अच्छाई से होता है,’ वाले अंदाज में तमाम बड़े आकार प्रकार के बाद भी रावण को अंततः जलना पड़ता है। 

वैसे, इन दिनों समाज में समय के साथ-साथ रावण का कद और संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। कभी 20-21 फीट का रावण आज 100 फीट को भी पार कर गया है । इसके बाद भी न तो रावण जलाने वालों की भूख शांत हुई है और न ही रावण का घमंड कम हुआ है इसलिए मृत्यु के बाद भी रावण हर नए साल में नए रंग-रूप और आकार-प्रकार के साथ फिर जन्म ले लेता है । समय के साथ रावणों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। पहले किसी शहर में एक या दो जगह ही रावण दहन होता था लेकिन अब रावण जलाने वाले भी बढ़ गए हैं और रावण भी। महानगरों क्या, अब तो छोटे छोटे शहरों में भी हर गली-मोहल्ले में रावण अपने बंधु-बांधवों के साथ बच्चों के खेलने के मैदान पर कई दिन पहले से कब्ज़ा करने लगा है। उधर, बच्चे भी दशहरे की छुट्टियों के बाद भी मैदान में दिखने की बजाए मोबाइल में तोप तमंचे चलाने वाले खेलों में आंखें गड़ाए रहते हैं। इससे बच्चे भी खुश हैं,उनके अभिभावक भी और रावण भी फूल कर कुप्पा है।

 रावण का अंत भले ही देशभर में एक साथ एक जैसा होता है लेकिन अपने जन्म से लेकर जलने तक के नौ दिनों के दौरान वह मीडिया की सुर्खियां जरूर बटोरता रहता है। कभी शहर के किसी खास क्षेत्र को ही रावण गली कहा जाता था क्योंकि रावण के सबसे ज्यादा पुतले वही बनते थे लेकिन समय के साथ रावण के जन्म स्थान का भी जमकर विस्तार हुआ है। अब शहर के कई इलाकों में छोटे बड़े आकार के सैंकड़ों रावण नजर आने लगे हैं। 

एक बार रावण कुनबे का आकार प्रकार तय हो जाने के बाद उनके जन्मदाता उनके अंदर आतिशबाजी लगाने का काम करते हैं क्योंकि रावण के जलने में असल मजा तो बम पटाखों का ही है। जब वह अपनी भयंकर कानफोडू आवाज और आंखों को चुंधिया देने वाली रोशनी यहां वहां बिखेरता है तो दर्शक उल्लासित होकर तालियां बजाने लगते हैं। एक तरह से इस आतिशबाजी, बम की आवाज और रंग-बिरंगी रोशनी के जरिए रावण अपनी ताकत का अहसास कराता है।

 आम लोग भी वहीं सबसे ज्यादा जुटते हैं जहां का रावण सबसे ज्यादा धूम धड़ाका करता है। यह दिखावा आम जिंदगी का फलसफा भी बनता जा रहा है मतलब जो जितना ज्यादा दिखावा कर सकता है उसकी उतनी ही ज्यादा पूछ होती है। फिर भले ही वह बुराइयों का पुतला ही क्यों न हो। शायद, यही वजह है कि इन दिनों किसी अपराध में पकड़े जाने पर भी नामी लोग शर्म से चेहरा छुपाने की बजाय ‘विक्ट्री साइन’ बनाते हुए जेल जाते हैं और मात्र जमानत मिलने पर उसके समर्थक ऐसा जलसा करते हैं जैसे वह जेल से नहीं बल्कि सरहद पर दुश्मन को धूल चटाकर लौट रहे हैं।

समाज में बढ़ती दिखावे की यह प्रवृत्ति उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग तक बिल्कुल वैसे ही यत्र-तत्र-सर्वत्र फैलती जा रही है जैसे दशहरे पर रावण के पुतलों की संख्या। शायद समाज को अब अपने बीच बुरी प्रवृत्ति वाले लोगों की मौजूदगी खटकती नहीं है। यदि ऐसा होता तो हर चुनाव में दागी प्रत्याशियों की संख्या नहीं बढ़ती? बुराइयों के प्रति हमारी सहनशीलता इस हद तक बढ़ गई है कि नवरात्रि के दौरान हम कन्या को देवी मानकर पूजते हैं और बिना किसी तीखे विरोध के उनके साथ बलात्कार जैसी घिनौनी घटनाओं के साक्षी भी बनते हैं। 

यदि हमें बेहतर समाज का निर्माण करना है तो बुराइयों को विस्तार देने की बजाय इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी होगी। इसकी शुरुआत प्रतीकात्मक ही सही, रावण के पुतलों से की जा सकती है क्योंकि दशानन को हम जितना मजबूत और लोकप्रिय बनाकर समाज में उसकी स्वीकार्यता बढ़ाते जाएंगे उससे जुड़ी बुराइयां भी समाज में उतनी ही गहराई से जड़ जमाती जाएंगी।

*(लेखक आकाशवाणी भोपाल में समाचार संपादक हैं और ‘चार देश चालीस कहानियां’ एवं ‘अयोध्या 22 जनवरी’ जैसी लोकप्रिय किताब लिख चुके हैं।)


Wednesday, August 28, 2024

पाठकों ने इस तरह बना दिया ‘अयोध्या 22 जनवरी’ पुस्तक को दस्तावेज

…और ‘अयोध्या 22 जनवरी’ पुस्तक से दस्तावेज बन गई। अखबारों में आज छपी खबरों, मीडिया की नामचीन हस्तियों की संजीदा मौजूदगी, परिजनों,पत्रकारीय जीवन के साथियों, आकाशवाणी की टीम और विभिन्न क्षेत्रों के अनेक जाने माने लोगों की उपस्थिति और उनकी प्रतिक्रियाओं ने ‘अयोध्या 22 जनवरी’ को दस्तावेज बना दिया। 

शनिवार 29 जून को रीडर्स क्लब भोपाल के ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम के दिन मौसम विभाग ने पहले ही भारी बारिश की चेतावनी देकर डरा दिया था। इसके बाद दिन चढ़ते ही शैतान बादलों ने अपनी धुंआधार कलाबाजियों से मौसम विभाग की चेतावनी को सच्चाई बना दिया। हम मतलब Manoj Kumar  भैया, मेरे हमनाम Sanjeev Persai ,अपनी ही राशि के Sanjay Saxena  और हम कदम Manisha Sanjeev जी..फिक्रमंद थे कि ऐसी बरसात में कोई कैसे आ पाएगा? लेकिन पढ़ने/सुनने/कहने की पुस्तक प्रेमियों की चाह को बारिश की धमा चौकड़ी भी नहीं रोक पाई। कुछ भीगते,कुछ बचते बचाते लोग जुटने लगे और चार बजे के लिए निर्धारित कार्यक्रम में साढ़े चार बजे तक 9 मसाला रेस्त्रां का सभागार खचाखच भर गया (वैसे भी, भारतीय समय तो यही है कार्यक्रम शुरू होने का)। वैसे, सर्व गुण संपन्न पत्रकार Ahmad Rashid Khan  ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि बेफिक्र रहिए सर, बहुत लोग आएंगे। साथ ही, मौसम वैज्ञानिक Gurudatta Mishra जी की मौजूदगी से भी हम आश्वस्त हो गए थे कि बाकी लोगों को भी आने का मौका मिलेगा। पहले मूल रूप से लगाई गई कुर्सियां भरी, फिर अतिरिक्त और उसके बाद व्यवस्थापकों ने हाथ खड़े कर दिए कि अब और कुर्सियां नहीं लग सकती और न ही अब कुर्सियां बची हैं।

जगह की हो रही कमी को महसूस कर पहले परिजनों ने कुछ कुर्सियां छोड़ी और बाद में आकाशवाणी के साथियों ने दिल बड़ा किया ताकि मेहमान बैठ सकें। कुछ लोगों ने बाहर से रिमझिम के बीच कार्यक्रम का आनंद लिया। फिर अनुशासित प्रस्तोता और संचार विशेषज्ञ संजीव ने कमान संभाली। चूंकि कार्यक्रम एक घंटे में समेटना था (उस सभागार में आगे भी एक कार्यक्रम था और हमने तय भी यही किया था) इसलिए वक्ता भी सीमित रखे गए थे लेकिन पाठकों पर किसी का जोर चला है क्या…!! स्थिति यह बन गई कि मूल वक्ता पीछे छूट गए और उत्साही पाठक बोलते गए। संजीव ने समय की कमी के मद्देनजर भरपूर प्रयास किए और एडवोकेट Yogesh Verma  जैसे कुछ अपने लोगों को सादर न बोलने के लिए मना भी लिया तो Pushpendra Mishra जी जैसे वक्ताओं को समय की सीमा में बांध दिया। फिर भी, वरिष्ठ पत्रकार चंद्रहास शुक्ला,मौसम वैज्ञानिक और मेरे छात्रावासी जीवन के वरिष्ठ गुरुदत्त मिश्रा जी, जाने माने योग गुरु Devi Dayal Bharti  जी, भारतीय सूचना सेवा के साथी Ajay Upadhyay , वरिष्ठ पत्रकार शुरैई नियाजी,जनसंपर्क अधिकारी रीतेश दुबे, जाने माने कमेंट्रैटर Prashant Singh Sengar ,समाचार वाचक Dharana Sachdev और राशिद अहमद खान को अपनी बात रखने का मौका मिल ही गया। मनीषा जी को भी अपने मनोभाव समेटने पड़े तो मनोज भैया ने अपना संबोधन और संजीव ने अपनी पटकथा सीमित कर ली। वरिष्ठ पत्रकार Ajay Bokil , Sarman Nagele, वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी Manoj Dwivedi ,भारतीय सूचना सेवा के Prashant Sharma और समीर वर्मा, मित्र @सुरेंद्र गुप्ता और Hema Gupta  जी, डा अनामिका रावत, जानी मानी पत्रकार, उद्घोषक Sanyukta Banerjee , समाजसेवी और पर्यावरणविद डा रचना डेविड सहित कई विशिष्ट जनों की मौजूदगी ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा दी।

इसके बाद शुरू हुआ अनूठा प्रश्नोत्तर सत्र। दोस्त,लेखक और संचारक संजय सक्सेना ने अपनी रोचक शैली में प्रश्नों के गोले दागे और हम भी निर्भीक सिपाही की तरह शब्दों की ढाल से उनका सामना करते गए। पुस्तक क्यों से लेकर हर पुस्तक के शीर्षक में अंकों के इस्तेमाल,हर लेख में चौपाई क्यों जैसे प्रश्नों के जरिए संजय ने ‘अयोध्या 22 जनवरी’ के लेखन के पीछे की कहानी पाठकों तक पहुंचा दी। तब तक 9 मसाला रेस्त्रां की टीम गरमा गरम पकौड़े और चाय लेकर हाजिर हो गई। बारिश के बीच चाय पकौड़े की भारतीय मेजबानी और मनमोहक/लज़ीज़ सुगंध भी उपस्थित लोगों के बोलने/सुनने के इरादों को डिगा नहीं सकी। दरअसल, घड़ी की सुइयां शाम के 6 बजे के आगे पहुंच गई थी इसलिए अगले आयोजन की तैयारी के मद्देनजर 9 मसाला की टीम चाहती थी कि लोग जल्दी खाएं और जाएं..पर  सभागार में मौजूद लोगों के इरादे थे कि खायेंगे जरूर पर जाएंगे पूरा सुन/देख कर ही। 

खैर, किसी तरह बोलने सुनने का दौर थमा तो स्मृतियों को सहेजने के लिए मोबाइल के कैमरे मैदान में आ गए…अनगिनत फोटो, मौके पर खरीदी गई दर्जनों किताबों पर हस्ताक्षर का गौरव, ढेर सारी सराहना और फिर ऐसे ही किसी आयोजन में मिलने के वादे के बीच यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण चरण यह था कि शुरुआत में रीडर्स क्लब ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर शरद पगारे को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की और दो मिनट का मौन रखा।


#अयोध्या22जनवरी #ayodhya22january 

रीडर्स क्लब

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एक सौ एक नॉट आउट…!!

सौ साल पूरे करना किसी भी प्रसारण माध्यम/संस्थान के लिए गर्व की बात है। हमारे देश में विधिवत रेडियो प्रसारण का आज 101 वां जन्मदिन है।  23 जुलाई, 1927 को इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) अस्तित्व में आई और यहीं से रेडियो प्रसारण को सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन मिला. यही कारण है कि 23 जुलाई राष्ट्रीय प्रसारण दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैसे निजी तौर पर रेडियो प्रसारण 1923 से शुरू हो गया था। 8 जून 1936 को इसे ऑल इंडिया रेडियो (AIR) नाम  दिया गया और 1957 में आकाशवाणी नाम अपनाकर कर यह रेडियो प्रसारण का पर्याय बन गया । 

हर साल नेशनल ब्रॉडकास्टिंग दिवस सेलिब्रेट करने का उद्देश्य रेडियो का महत्व याद दिलाना है। इन सौ सालों में रेडियो ने सतत रूप से जवान होते हुए कई उपलब्धियां हासिल की हैं। अब नए नवेले डिजिटल रूप में साफ आवाज़, अल्फाज़ और अंदाज़ में यह मोबाइल फोन और कार के साउंड सिस्टम के जरिए हर घर तक पहुंच रहा है और हर दिल में जगह बना रहा है। यह हर जेब का हिस्सा भी बन चुका है।

 हाल ही में रायटर और ऑक्सफोर्ड जैसे नामचीन संस्थानों के सर्वे में आकाशवाणी और आकाशवाणी से प्रसारित समाचारों को देश भर के सभी मीडिया में सबसे विश्वसनीय माना गया है। तकनीकी के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आकाशवाणी की सेवाएं अब रेडियो से भी आगे मोबाइल ऐप newsonair पर लाइव उपलब्ध हैं और आप दुनियाभर में कहीं से भी एक टच पर भोपाल से लेकर देश के किसी भी रेडियो स्टेशन का प्रसारण सुन सकते हैं।

  इसके अलावा,हमारे समाचार बुलेटिन और समसामयिक कार्यक्रम यूट्यूब, एक्स और फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं जिन्हें आप अपनी सुविधा से कभी भी और कहीं भी सुन सकते हैं। इसलिए,सबसे विश्वसनीय/सटीक/सहज और सहयोगी माध्यम के हमारे जीवन से जुड़ने-ज़िंदगी का हिस्सा बनने और तमाम उतार चढ़ाव के बाद भी निरंतर सहभागी के रूप में कायम रहने की बधाई। रेडियो इसी तरह फले फूले… सभी रेडियो प्रेमियों को बधाई-शुभकामनाएं🙏


#NationalBroadcastingDay 

#राष्ट्रीयप्रसारणदिवस